गोरखपुर का खतरनाक शायर
तुम्हारे हुस्न के गीतावाटीका में फंसकर
इश्क के रामगढ़ताल मे डूब जाता है
दिल धड़कता था कभी घंटाघर सा
अब यादों का पादरी बना जाता है
तुम लगती हो जैसे गिलौरी साहेबगंज की
यहाँ लौग लत्आ सा मुंह हुआ जाता है
तेरी सूरत के गोरक्षपीठ मंदिर को देखकर
मेरा मन भी तारामंडल सा मचल जाता है
चहकती हो तुम गोलघर की शाम सी
मेरा प्यार यहाँ ऊर्दू बाजार सा हुआ जाता हैं
तेरी पतली कमर है जैसे गलियाँ बैंक रोड की
उस पर मेरा दिल रूस्तमपुर के जाम सा रुक जाता है
बदन है खूबसूरत तुम्हारा बिछिया सा
और ये आशिक नौंसढ की धूल में नहाये जाता है
1 comments:
Great lines
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