Pranayama कैसे करे और इसके क्या लाभ है
प्राणायाम एक विधि है, यह एक साधना है जिसमें सांस को एक विशेष प्रकार
से अंदर खींचा जाता है और बाहर छोड़ा जाता है। इसके करने से कई शारीरिक
स्वास्थ्य लाभ होते है।
- भस्त्रिका प्राणायाम: ष्श्वास को यथाषक्ति फेफड़ो में पूरा भरना एवं बाहर छोड़ना। यह प्राणायाम एक से पाँच मिनट तक किया जा सकता है। लाभ: सर्दी, जुकाम, श्वास रोग, नजला, साइनस, कमजोरी, सिरदर्द व स्नायु रोग दूर होते है। फेफड़े एवं हृदय स्वस्थ होता है। कैसे करे और इसके क्या लाभ
- कपालभाति प्राणायाम: ष्श्वास को यथाषक्ति बाहर छोड़कर पूरा ध्यान श्वास को बाहर छोड़ने में होना चाहिए। भीतर श्वास जितना अपने आप जाता है उतना जाने देना चाहिए। श्वास जब बाहर छोड़ंेगे तो स्वाभाविक रूप से पेट अन्दर आयेगा। यह प्राणायाम यथाशक्ति पाँच मिनट तक प्रतिदिन खाली पेट करना चाहिए।
- बाह्य प्राणयाम: ष्श्वास को बाहर छोड़कर बाहर ही रोकना, ठोड़ी को कंठ कूप में लगाना, पेट को खींचकर अन्दर करना एवं नाभि से नीचे वाले भाग को भी अन्दर खींच लेना, बाह्य प्राणायाम कहलाता है। लगभग दस से पन्द्रह सैकंड श्वास को बाहर रोककर बाद में गर्दन को सीधा करके श्वास अन्दर लेना। यह एक प्राणायाम हुआ। इस प्रकार यह प्राणायाम तीन से पांच बार तक सकते है।
- अनुलोम-विलोम प्राणायाम: किसी भी ध्यानात्मक आसन में सीधे बैठकर दाएं हाथ के अंगूठे से नाक को बन्द करके बाएं नाक से श्वास फेफड़ो में पूरा भरना, श्वास भरकर तुरन्त बाएं नाक को दाए हाथ की ही बीच की दो अंगुलियों से बन्द करके दाए नाक से श्वास को बाहर छोड़ देना। श्वास पूरा छूटने पर अब बाएं नाक को बन्द रखते हुए ही दाएं नाक से श्वास पूरा भरना तथा दाएं नाक को बन्द करके बाएं नाक से श्वास को बाहर छोड़ देना। इस प्रकार करने से एक प्राणायाम हुआ। इसी तरह निरन्तर बाएं से लेकर दाएं छोड़ना तथा दाएं से लेकर बाएं से छोड़ते रहना अनुलोम-विलोम प्राणायाम कहलाता है। यह प्राणायाम यथाशक्ति 15 मिनट तक किया जा सकता है।
- भ्रामरी प्राणायाम: ष्श्वांस फेफड़ों में भरकर दोनों हाथों की प्रथम अंगुलियां माथे पर रखना, शेष तीन अंगुलियां आंख बन्द करके नाक के मूल से पूरी आँखों पर रख देना, अंगूठे से कान बन्द कर लेना। अब श्वांस को बाहर छोड़ते हुए नाक से भ्रमर (भोंरा) की तरह नाद करना। इस प्रकार से यह अभ्यास 3 से 5 बार अवष्य करना चाहिए।
- उद्गीथ प्राणायाम: दोनों नासिकाओं से श्वास पूरा फेफड़ो में अंदर भरकर बाहर छोड़ते हुए पवित्र ओम शब्द का उच्चारण करना। यह प्रक्रिया कम से कम 3 से 5 बार अवष्य करनी चाहिए।
- ओम का ध्यान: पूर्ण रूप से मौन होकर साक्षी भाव से दृष्टा बनकर श्वासों की सहज गति को देखना, प्रत्येक श्वांस के साथ प्राण
लाभ: ध्यान एवं एकाग्रता के लिए यह जरूरी अभ्यास है। इससे मन शान्त होता है व दिव्य आनन्द की अनुभूति होती हैं यह अहसास होता है कि सुख, शान्ति व आनन्द बाहर नहीं भीतर है।
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